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कालसर्प योग / सर्प योग- पालक या संघारक

वास्तव में राहु केतु छाया ग्रह हैं उनकी अपनी और दृष्टि नहीं है, राहु का जन्म नक्षत्र भरणी, तथा केतु का नक्षत्र अश्लेषा कहा गया है।

राहु के जन्म नक्षत्र भरनी के देवता काल और केतु के जन्म नक्षत्र आश्लेषा के देवता सर्प हैं अतः इसी से इसे सर्प शाप के कारण नाम को बदल कर काल सर्प कर दिया गया है जबकि पुराने किसी भी शास्त्र में काल सर्प योग नाम का कोई शब्द नहीं सर्प योग है।

बृहत पाराशर होरा शास्त्रम ग्रंथ के पूर्वजन्म शापद्योतकध्याय: अध्याय में सर्प योग, अनापत्त योग, पित्र शाप आदि सभी शापो के बारे में विस्तृत जानकारी देकर उनसे होने वाली परिणामों के निवारण एवं उपाय भी बताए हैं।

वराह मिहिर ने अपनी संहिता में जातक नभ संयोग में सर्प का उल्लेख किया है जबकि काल सर्प योग का नाम ही नहीं है।

महर्षि पाराशर एवं वराहमिहिर ने प्राचीन ज्योतिष आचार्यों ने सर्प योग को माना है और अपने ग्रंथों में इसका जिक्र किया है।

ये काल सर्प योग आधुनिक विद्वानों द्वारा बनाया बदला हुआ सर्प योग ही है। ये शब्द कुछ ही वर्षो पहले अवतरित हुआ है जबकि सर्प योग हमेशा से ही है।

काल सर्प योग को मीडिया आदि दूसरे माध्यम से इतना महिमा मंडित करके बताया गया है जिससे कली काल मे दुखी जातक और दुखी हो जाये।

सर्प दोष की शांति हमेशा से ही हुई है पर काल सर्प योग नाम ही इतना खतरनाक है जिससे जातक डर से अपना आत्म विश्वर भी खो देता है।

महर्षि पराशर, भृगु, कल्याण बर्मा, बादरायण, गर्ग, मणिप्त आदि ने सर्प योग सिद्ध किया है।

काम रत्न के अध्याय 14 के श्लोक 41 में राहु को काल कहा गया है। श्लोक 50 में आगे लिखा हुआ है, काल अर्थात मृत्यु।

मानसागरी के चौथे अध्याय (4) का दसवां(10) श्लोक कहता है - शनि, सूर्य और राहु जन्मांग में लग्न में सप्तम भाव में होने पर सर्पदंश होता है।

हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों में राहु के देवता काल अवधि देवता माना गया है, किसी भी ग्रह की पूजा के लिए उस ग्रह के देवता तथा प्रत्याशी देवता का पूजन अनिवार्य है।

राहु के गुण अवगुण शनि जैसे हैं। शनि आध्यात्मिक चिंतन, दीर्घ विचार एवं गणित के साथ आगे बढ़ने का गुण अपने पास रखता है।

राहु मिथुन राशि में उच्च का, धनु राशि में नीच का और कन्या राशि में शुभ होता है।

शनि बुध राहु के मित्र हैं तथा गुरु सैम ग्रह है।

आधुनिक विद्वानों ने ज्योतिष शास्त्र में संशोधन करने वाले आचार्य ने सर्प का मुँह राहु और पूंछ केतु इन दोनों के बीच में सभी ग्रह रहने पर निर्माण होने वाली ग्रह स्थिति को कालसर्प योग कहा है। यह कालसर्प योग मूल सर्प योग का प्रतिरूप है।

इनमे से कुछ विशेष लोगो की जन्मपत्री में काल सर्प योग / सर्प योग है, इसका ज्ञान आज कल के ब्राह्मणों को भी कम ही दिखता है -

अब्राहम लिंकन एवं पंडित जवाहरलाल नेहरू के उदाहरण हैं, दोनो महानुभावों का जन्म इसी सर्प योग में हुआ है।

चतुर्थ,अष्टम, द्वादश स्थान में राहु और कुंडली में कालसर्प योग हो तो नकारात्मक होगा।

रिलायंस इंडस्ट्रीज के उद्योगपति धीरुभाई अंबानी का जन्म पत्री ने 18 वर्षों में ही धीरुभाई को शून्य से ब्रह्मांड तक प्राप्त करा दिया। इन दोनों दशकों से राहु ने उन्हें खूब दिया।

देश के चर्चित लोगो की पत्री में सर्प योग रहा है, श्री जवाहरलाल नेहरू जी, श्री मोरारजी देसाई जी की पत्री में सर्प योग है। महाराष्ट्र के भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्री अब्दुल रहमान अंतुले, भूत पूर्व प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर जी, आचार्य रजनीश (ओशो), सुर सम्राट श्रीमती लता मंगेशकर जी, राम कथा वाचक श्री मुरारी बापू जी तथा महानायक श्री अमिताभ बच्चन जी की जन्मपत्री में कालसर्प योग है।

बहुत से ऐसे लोग हैं जिनकी पत्री में सर्प योग रहा है, ये भी कहा जा सकता है कि राहु जातक से इतनी तपस्या, साधना करवाकर उन्हें बुलंदिया तक पहुचने में सक्षम है। जिनके भी नाम ऊपर लिखे हैं उन्होंने इतिहास लिखे हैं जिसमे संशय नहीं।

जन्मांग के चतुर्थ भाव में राहु ने हर्षद मेहता मटियामेट कर दिया। राहु की महादशा में शुक्र का समय उनके लिए सर्वोत्तम फलदाई रहा, किंतु सूर्य की अंतर्दशा शुरू होते ही राहु केतु का गोचर भ्रमण शुरू होते ही उनकी धरपकड़ मजबूत हुई, और उनके सभी रहस्यों का पर्दाफाश हो गया।

वराह मिहिर में अपने संहिता के जातक नभ संयोग में सर्प योग का उल्लेख किया है। कल्याण वर्मा ने अपनी बहुमूल्य रचना सारावली में सर्प योग की विषद व्याख्या की है।

शांति रत्नम ने सर्प योग को ना केवल मान्यता ही नहीं अपितु सर्प शांति को जातक के लिए परम शांति देने वाला बताया हैl

काल सर्प / सर्प योग के प्रकार

सर्प योग 12 प्रकार के होते हैं, परंतु व्यावहारिक लक्षणों से पता चला है कि अलग-अलग लखनऊ में घटित होने के कारण अलग-अलग प्रकार के सर्प योग घटित होते हैं। राहु की 12 भाव में 12 स्थितियों से 12 तरीके के सर्प योग बनते हैं।

*राहु केतु के मध्य सभी ग्रहों का आ जाना काल सर्प या सर्प योग कहलाता है। ये 2 प्रकार के भी हो सकते हैं।

1. खंडित काल सर्प योग

2. अखंडित काल सर्प योग

तथा 2 तरह से भाव स्पष्ट करते हैं -

1. उदित काल सर्प योग

2. अनुदित काल सर्प योग

इन सभी को देखकर ही निर्धारित किया जाएगा कि सर्प योग प्रभावी रहेगा भी या नहीं।*

राहु केतु विभिन्न भाव में स्थित होकर 12 प्रकार के कालसर्प दोष का निर्माण करते हैं। वैसे तो भारतीय ज्योतिष में 144 तरह का कालसर्प योग होता है किंतु 12 तरह के कालसर्प योग अति प्रसिद्ध है। शास्‍त्रों के अनुसार राहु और केतु 180 डिग्री में होते हैं और जब इन के मध्य में समस्त 7 ग्रह आ जाते हैं तो कालसर्प योग बनता है। आइए जानें कि इन 12 में से कौन सा कालसर्प दोष किस भाव में होता है।

1 अनंत कालसर्प योग

राहु लग्न में हो और केतु सप्तम भाव में स्थित हो तथा सभी अन्य ग्रह सप्तम से द्वादश, एकादशी, दशम, नवम, अष्टम और सप्तम में स्थित हो तो यह अनंत कालसर्प योग कहलाता है।

2 कुलिक कालसर्प योग

राहु द्वितीय भाव में तथा केतु अष्टम भाव में हो और सभी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में हो तो कुलिक नाम कालसर्प योग होगा।  

3 वासुकी कालसर्प योग

राहु तृतीय भाव में स्थित है तथा केतु नवम भाव में स्थित होकर जिस योग का निर्माण करते हैं तो वह दोष वासुकी कालसर्प दोष कहलाता है।

4 शंखपाल कालसर्प योग

राहु चतुर्थ भाव में तथा केतु दशम भाव में स्थित होकर अन्‍य ग्रहों के साथ जो निर्माण करते हैं तो वह कालसर्प दोष शंखपाल के नाम से जाना जाता है।  

5 पद्य कालसर्प योग

चतुर्थ स्‍थान पर दिए दोष के ऊपर का है पद्य कालसर्प दोष इसमें राहु पंचम भाव में तथा केतु एकादश भाव में साथ में एकादशी पंचांग 8 भाव में स्थित हो तथा इस बीच सारे ग्रह हों तो पद्म कालसर्प योग बनता है।

6 महापद्म कालसर्प योग

राहु छठे भाव में और केतु बारहवे भाव में और इसके बीच सारे ग्रह अवस्थित हों तो महापद्म कालसर्प योग बनता है। 

7 तक्षक कालसर्प योग

जन्मपत्रिका के अनुसार राहु सप्तम भाव में तथा केतु लग्न में स्थित हो तो ऐसा कालसर्प दोष तक्षक कालसर्प दोष के नाम से जाना जाता है।  

8 कर्कोटक कालसर्प योग

केतु दूसरे स्थान में और राहु अष्टम स्थान में कर्कोटक नाम कालसर्प योग बनता है।

9 शंखचूड़ कालसर्प योग

सर्प दोष जन्मपत्रिका में केतु तीसरे स्थान में व राहु नवम स्थान में हो तो शंखचूड़ नामक कालसर्प योग बनता है।

10 घातक कालसर्प योग

कुंडली में दशम भाव में स्थित राहु और चतुर्थ भाव में स्थित केतु जब कालसर्प योग का र्निमाण करता है तो ऐसा कालसर्प दोष घातक कालसर्प दोष कहलाता है।  

11 विषधर कालसर्प योग

केतु पंचम और राहु ग्यारहवे भाव में हो तो विषधर कालसर्प योग बनाते हैं। 

12 शेषनाग कालसर्प योग

कुंडली में राहु द्वादश स्थान में तथा केतु छठे स्थान में हो तथा शेष 7 ग्रह नक्षत्र चतुर्थ तृतीय और प्रथम स्थान में हो तो शेषनाग कालसर्प दोष का निर्माण होता  है। 

काल सर्प योग / सर्प योग को अधिक अशुभ बनाने वाले महत्वपूर्ण योग निम्नलिखित हैं-

रवि - राहु युति या रवि - केतु युति ग्रहण योग।

चंद्र - राहु युति चंद्र ग्रहण योग।

मंगल - राहु युति अंगारक योग।

बुध - राहु युति जड़त्व योग।

गुरु - राहु युति चांडाल योग।

शनि - राहु युति नंदी योग एवं प्रेत योग बनाती है।

केंद्र में स्वग्रही या उच्च का गुरु, शुक्र, शनि, मंगल, रवि, चंद्र इनमें से कोई ग्रह स्वग्रही होकर उच्च का हो तो काल सर्प योग / सर्प योग भंग होता है। केंद्र में भद्र योग, बुधादित्य योग, लक्ष्मी योग, शश योग, मालव्य योग तथा पंच महापुरुषों में से कोई भी योग हो तो काल सर्प / सर्प योग भंग होता है l

उपाय एवं फल

कहने का तात्पर्य है कि किसी भी तरह का पूजा-पाठ कभी निषेध नहीं जाता, वह उच्च फलदायक ही होता है। परंतु आधुनिक ज्योतिषी और विद्वानों ने कालसर्प योग के नाम को सर्प योग ना लिखकर इतना डरावना बना दिया है कि लोग डरते और परेशान हो जाते हैं।

सर्प योग की शांति अति आवश्यक है ये सत्य है। याद रहे सर्प योग हमेशा प्रभावी नहीं रहता। जब कभी गोचर में सर्प योग बनता है तभी ये सक्रिय रहता है।

महादेव शिव का पूजन करने से सभी तरह के कुयोगों की शांति होती है क्योंकि शिव ने अपने मस्तक पर सर्प को स्थान दिया है। अतः तीन सावन लगातार शिवपूजन करके शिव का रुद्राभिषेक करने से तथा चौथे साल पूजन कराकर श्री हत्या हरण कुंड में स्नान करके एक सांप का चांदी का जोड़ा सहित गंगा में प्रवाहित कर ,पूर्ण कपड़ों से स्नान करके सारे कपड़े वहीं छोड़कर, कुछ भिखारियों को भोजन करने से सर्प योग के दुष्परिणामों को कम किया जा सकता है।

याद रहे ये दोष समाप्त नहीं किया जा सकता पर कुप्रभाव को कम किया जा सकता है।

राहु की शांति तथा चंद्रमा की शांति अति आवश्यक होगी अतः इनका दान जप भी श्रेष्ठ होगा।

गरीबो की सहायता करने से उनकी दवाई, भोजन दान देने से राहु शांत होते हैं। ये अचूक उपाय है।

4 या 12 अमावस्या को गंगा स्नान कर तर्पण करने से पित्र दोष, गरीबो को भोजन कराने से, चिड़ियों को दाना खिलाने से अनेक तरह के इस तरह के कुयोगों में शांति आती है।

परिवार के किसी सदस्य की लंबी चल रही बीमारी को कुछ कम करने के लिए जातक के ऊपर से एक मुट्ठी बाजरा 7 बार उल्टा उतार कर चिड़ियों को खिला दीजिये क्योंकि वो ये ग्रहण करने में सक्षम है तथा दक्षिण दिशा की तरफ़ सरसो के तेल का दिया जलाने से बीमारी जाती रहती है।

गुरु संबंधी चीज़ों का दान करने से माता पिता के स्वास्थ्य संबंधी लाभ मिले तथा जिस जातक का पढ़ाई लिखाई में मन न लग रहा हो उन्हें पिता किसी गरीब बच्चे की पढ़ाई में सहयोग करे, परिणाम स्वरूप जातक पढ़ाई शुरू कर देगा।

अधिक जानकारी के लिए जातक अपनी जन्मपत्री किसी ब्राह्मण को दिखाए तथा कुयोगों से बने अरिष्टों से बचे। इस तरह के किसी भी योग से डरने की आवश्यकता नहीं परन्तु शुभ कार्य करने की आवश्यकता है।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से...

March 02, 2020 Posted by:- डॉ0 सौरभ शंखधार ज्योतिर्विद (एम0 ए0, एम0 बी0 ए0, पी0 एच्0 डी0)

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