शिवरात्रि 21 फरवरी 2020 (निराकार से साकार स्वरूप की साधना)
(शिव शक्ति के मिलन का महोत्सव)
इस वर्ष महाशिवरात्रि बेहद फलदायी होने के साथ ही ज्योतिषिय रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण होगी। इस अवसर पर 117 वर्ष बाद ग्रहों का दुर्लभ योग बन रहा है।
25 फरवरी 1903 को ठीक ऐसा ही योग बना था। इस साल गुरु भी अपनी राशि धनु में हैं। इस योग में शिव पूजा करने पर शनि, गुरु, शुक्र ग्रहों के दोषों से भी मुक्ति मिल सकती है।
शिवरात्रि पर विष योग करीब 28 साल पहले 2 मार्च 1992 को बना था। इस योग में शनि और चंद्र के लिए विशेष पूजा करनी चाहिए। कुंडली में शनि और चंद्र के दोष दूर करने के लिए शिव पूजा करने की सलाह दी जाती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में काल सर्प योग और विष योग हो तो उनकी शांति के लिए इससे उपयुक्त अवसर नहीं हो सकता।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी अर्थात शुक्रवार 21 फरवरी को महाशिवरात्रि मनाई जाएगी।
ज्योतिष में जब सूर्य कुंभ राशि और चंद्र मकर राशि में होता है, तब फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि की रात ये पर्व मनाया जाता है।
21 फरवरी की शाम 5.22 बजे तक त्रयोदशी तिथि रहेगी, उसके बाद चतुर्दशी तिथि शुरू हो जाएगी जबकि शिवरात्रि चतुर्दशी को ही मनाया जाता है।
ज्योतिषियों का कहना है कि महाशिवरात्रि रात्रि का पर्व है और 21 फरवरी की रात चतुर्दशी तिथि रहेगी, इसलिए इस साल ये पर्व 21 फरवरी को मनाया जाएगा। इस बार 117 साल बाद शनि और शुक्र का दुर्लभ योग शिवरात्रि पर बन रहा है। शनि अपनी स्वयं की राशि मकर में और शुक्र ग्रह अपनी उच्च राशि मीन में रहेगा।
21 फरवरी को सर्वार्थ सिद्धि योग भी रहेगा। पूजन के लिए और नए कार्यों की शुरुआत करने के लिए यह योग बहुत ही शुभ माना गया है।
शिवरात्रि पर शनि के साथ चंद्र भी रहेगा। शनि-चंद्र की युति की वजह से विष योग बन रहा है।
बुधादित्य योग और सर्प योग भी रहेंगे महा शिवरात्रि पर रहेंगे।
बुध और सूर्य कुंभ राशि में एक साथ रहेंगे। इस वजह से बुध-आदित्य योग भी बनेगा।
इस दिन सभी ग्रह राहु-केतु के मध्य रहेंगे, इस वजह से काल सर्प योग भी बन रहा है।
शिवरात्रि पर राहु मिथुन राशि में और केतु धनु राशि में रहेगा, शेष सभी ग्रह राहु-केतु के बीच रहेंगे जो काल सर्प योग का निर्माण करेंगे।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि में चंद्रमा सूर्य के करीब होता है, अतः यही समय जीवन रूपी चंद्रमा का शिव रूपी सूर्य के साथ योग मिलन होता है अतः शिवरात्रि को शिव पूजा करने से जीव को अभीष्ट पदार्थ की प्राप्ति होती है यही शिवरात्रि का रहस्य हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रतिपदा आदि 16 तिथियों के अग्नि आदि देवता स्वामी होते हैं अतः जिस तिथि का जो देवता स्वामी होता है उस देवता का उस स्थिति में व्रत पूजन करने से उस देवता की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान शिव हैं अर्थात शिव की तिथि चतुर्दशी है तथा इस तिथि की रात्रि में व्रत करने के कारण इस व्रत का नाम शिवरात्रि होना उचित है|
प्रत्येक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी में शिवरात्रि व्रत होता है जो मास शिवरात्रि व्रत कहलाता है शिवभक्त प्रत्येक कृष्ण चतुर्दशी का व्रत रखे हैं, परंतु फाल्गुनी कृष्ण चतुर्दशी को आज रात्रि में शिव की पूजा का प्रावधान सर्वोत्तम है।
शिव पूजा विधान :
शिव नित्य नूतन हैं, शिव का पूजन हर पल बिना रुके हुए प्रकृति करती ही रहती है, फिर भी महाशिवरात्रि पर 4 प्रहर तथा आठ प्रहर का पूजन का शास्त्रोक्त है।
शिवरात्रि पर रात्रि जागरण परमावश्यक है, आध्यात्मिक साधना के लिए उपवास परम आवश्यक है, उपवास के साथ रात्रि जागरण के महत्व गीता का यह कथन अत्यंत प्रसिद्ध है या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागृति संयमी (२/69) अर्थात इंद्रियों और मन पर नियंत्रण करने वाला संयमी व्यक्ति ही रात्रि में जागकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील हो सकता है। रात्रि प्रिय शिव से भेंट करने का समय रात्रि के अलावा कोई नहीं हो सकता।
प्रत्येक व्यक्ति को शिव का पूजन रुद्राभिषेक और अष्टाध्याई से संपन्न करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है, फिर भी राशियों के हिसाब से हर जातक सही पूजा कर्म से भगवान की विलक्षण कृपा प्राप्त कर सकता है -
राशियों के हिसाब से साधना :
मिथुन, मकर राशि वाले लोग गन्ने के रस से अवश्य करेंगे।
तुला, वृष, मीन और कर्क राशि वाले लोग दूध से तथा पंचामृत से अभिषेक करेंगे।
मेष, वृश्चिक, कुंभ, राशि वाले लोग केसर युक्त जल से तथा, मिथुन, सिंह, कन्या राशि वाले लोग केसर युक्त दूध से अभिषेक करने से भगवान की शिव की कृपा को प्राप्त करेंगे।
इन्द्रियों को संयम में रखते हुए जो भी शिव का पूजन रुद्राभिषेक करता है वो शिव की पूर्ण कृपा का पात्र बन जाता है।
ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से...