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फाल्गुन मास पर्व - होली 9 मार्च 2020



होली पर 2 तरह के पर्व:

१. आध्यात्मिक साधनाओ के लिए विशेष

२. रंगों का त्योहार

१. आध्यात्मिक साधनाओ के लिए विशेष:

होलिका वास्तव में एक वैदिक यज्ञ है। वैदिक यज्ञों में सोमयज्ञ सर्वोपरि है। वैदिक काल में प्रचुरता से उपलब्ध सोम लता का रस निचोड़ कर उससे जो यज्ञ संपन्न किए जाते थे वे सोमयज्ञ कहलाए।

ब्राह्मण ग्रंथों में इसके अनेक विकल्प दिए हुए हैं जिनमें पूतीक, अर्जुन वृक्ष मुख्य हैं। अर्जुन वृक्ष को हृदय के लिए अत्यंत शक्तिप्रद माना गया, आयुर्वेद में अर्जुन की छाल हृदय रोग के निवारण के संदर्भ में प्रस्तुत है। महाराष्ट्र में सम्प्रति सोमयोग के अनुष्ठान में राषेर नामक वनस्पति का उल्लेख है।

सोमरस इतना शक्ति वर्धक और उल्लास कारक होता है कि उसका पान कर वैदिक ऋषियों को अमरता जैसी अनुभूति प्राप्त हुई -

अपाम सोमममृता अभूम(ऋग्वेद)

होलिका में जलाए जाने वाली आग यज्ञ वेदी में निहित अग्नि का प्रतीक है। यज्ञ वेदी के समीप एक गुलर की टहनी गाड़ी जाती है क्योंकि गूलर का फल माधुर्य की दृष्टि से सर्वोपरि माना गया।

गूलर का फल मीठा होता है कि पकते ही इसमें कीड़े पड़ने लगते हैं। फागुन पूर्णिमा की रात्रि तंत्र मंत्र विशेष साधना सीखने के लिए सर्वोत्तम हैं, कुछ साधको के जो लंबे समय से अनुष्ठान व तंत्र प्रयोग सीख रहे हैं उनके लिए आज पूर्णाहुति का विशेष योग है।

2. रंगो का त्योहार होली:

इस पर्व को नवान्नेष्टि यज्ञ भी कहा गया। खेतों में नवीन अन्न को यज्ञ में हवन करके प्रसाद लेने की परंपरा है, इस अन्न को होलिकोत्सब कहते हैं।

इसी से इसका नाम होलाष्टक पड़ा। होली का उत्सव मनाने के संबंध में अनेक मत प्रचलित हैं।

1. ऐसी मान्यता है कि इस पर्व का संबंध काम दहन से है, भगवान शंकर ने अपनी क्रोधाग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था, तभी से यह त्यौहार का प्रचलन हुआ।

2. फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा पर्यंत आठ दिन होलाष्टक मनाया जाता है, भारत के कई प्रदेशों में होलाष्टक शुरू होने पर एक पेड़ की लकड़ी काटकर उसमें रंग बिरंगे कपड़े के टुकड़े बांधे जाते हैं इस शाखा को जमीन में गाड़ दिया जाता है। सभी लोग इसके नीचे होलिकोत्सव बनाते हैं।

3. यह त्यौहार हिरणाकश्यप की बहन की स्मृति में मनाया जाता है, उनकी बहन होलिका वरदान के प्रभाव से अग्नि स्नान करती थी लेकिन जलती नहीं थी अपनी बहन से प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्निस्नान करने को इसलिए कहा गया कि प्रह्लाद जल जाएगा, और होलीका बच जाएगी। जिसमे होलीका जल गई और प्रह्लाद बच गए। इसी कारण त्यौहार मनाने की प्रथा चल पड़ी।

4. इस दिन आम मंजरी और चंदन को मिलाकर खाने का बड़ा महत्व कहते हैं, जो लोग फाल्गुन पूर्णिमा पर एकाग्र चित्त से डोले में झूलते हुए श्री कृष्ण गोविंद के दर्शन करते हैं उनको निश्चय ही बैकुण्ठ लोक प्राप्त होता है।

9 मार्च को फाल्गुन पूर्णिमा पर होलिका दहन होगा और मंगलवार 10 मार्च को होली खेली जाएगी। सोमवार को होलिका दहन होना शुभ संयोग है।

499 साल के बाद बन रहा है। इस साल होली पर गुरु स्वराशि धनु और शनि स्वराशि मकर में रहने से विशेष योग बन रहा है।

पहले इन दोनों ग्रहों का ऐसा योग 3 मार्च 1521 को बना था, तब भी ये दोनों ग्रह अपनी-अपनी राशि में ही थे।

होली पर शुक्र मेष राशि में, मंगल और केतु धनु राशि में, राहु मिथुन में, सूर्य और बुध कुंभ राशि में, चंद्र सिंह में रहेगा।

ग्रहों के इन योगों में होली आने से ये शुभ फल देने वाली रहेगी। इस प्रकार का यह योग देश में शांति स्थापित करवाने में सफल होगा। व्यापार के लिए हितकारी रहेगा और लोगों में टकराव समाप्त होगा।

हर साल जब सूर्य कुंभ राशि में और चंद्र सिंह राशि में होता है, तब होली मनाई जाती है।

3 मार्च से शुरू हो गया है, पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है। होलाष्टक में सभी तरह के शुभ कर्म वर्जित रहते हैं। इन दिनों में पूजा-पाठ और दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है।

होलिका दहन मुहूर्त- 9 मार्च 2020 शाम 6 बजकर 22 मिनट से रात 8 बजकर 49 मिनट तक 18:22 से 20:49

भद्रा पूंछ- सुबह 9 बजकर 37 मिनट से 10 बजकर 38 मिनट तक

भद्रा मुख- 10 बजकर 38 मिनट से दोपहर 12 बजकर 19 मिनट तक

पूर्णिमा तिथि आरंभ- सुबह 3 बजकर 3 मिनट से (9 मार्च 2020)

पूर्णिमा तिथि समाप्त- रात 11 बजकर 16 मिनट तक (9 मार्च 2020)

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से...

March 02, 2020 Posted by:- डॉ0 सौरभ शंखधार ज्योतिर्विद (एम0 ए0, एम0 बी0 ए0, पी0 एच्0 डी0)

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